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श्रम का फल / पद्मजा बाजपेयी

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हमारे चारों ओर जो कुछ भी है,
वह किसी न किसी के श्रम का फल है।
मकान, कारखाने, दुकान, रेल, जहाज,
स्कूल, अस्पताल, खेत-बाग,
ये सभी केवल कल्पना की वस्तु नहीं,
इसमें लाखों-करोड़ों के हाथ करते है काम साथ-साथ
तब कहीं एक युग बनता है,
वर्तमान संस्कृति का कलेवर उभरकर सामने आता है,
कितना सु: खद प्रतीत होता है,
सब कुछ बैठे-बैठे पा जाना और अपने भाग्य पर इतराना
नहीं-नहीं यह हमारी भूल है, कर्मठता ही जीवन का मूल है।
कर्मशील जीवन भर श्रम करता है,
अपने से अधिक, दूसरों पर मरता है।
रोते को हँसाने का सुख, भूखे को खिलाने का सुख,
उजड़े को बसाने का सुख, अनपढ़ को पढ़ाने का सुख,
दुश्मनों से देश को बचाने का सुख, क्या होता है?
आप नहीं समझ सकते, यह वही समझ सकता है,
जो कर्म के लिए जन्म लेता है
और कर्म करते-करते ही मरता है।