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पीड़ा मेरी सुनकर / रेनू द्विवेदी

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मै बेटी हूँ पुष्प सरीखी,
जीवन भर बस दर्द मिला!
पीड़ा मेरी सुनकर देखो,
यह विस्तृत ब्रम्हांड हिला!

जाने किसने फूँक लगा दी,
टूट पाँखुरी बिखर गयी!
सब ने कुचला पैरों से ही,
उड़कर चाहे जिधर गयी!

लुप्त हुआ संवेदन सबका,
किससे-किससे करूँ गिला!
पीड़ा मेरी---

कांप-उठा है अंतस मेरा,
जीवन अब तो बोझिल है!
भीतर से बाहर तक टूटी,
अंग-अंग सब चोटिल है!

टूट खंडहर-सा बिखरा है,
सुन्दर था जो रूप किला!
पीड़ा मेरी---
कभी निर्भया कभी आशिफा,
बनकर कब तक सहूँ भला!
धारण करके रूप कालिका,
धड़ से दूँ मैं काट गला!

पापी का कर दंड सुनिश्चित,
कर्मो का दूँ आज सिला!
पीड़ा मेरी---