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दिल में मोहब्बत लेकर / आनन्द किशोर

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इक दुआ लब पे लिये दिल में मोहब्बत लेकर
इश्क़ की राह पे चलता हूँ अक़ीदत लेकर

एक छोटी सी ख़ता मेरी भुलाई न गयी
तुम भी आते हो शबो रोज़ शरारत लेकर

लौट आया है वो बस्ती से मगर रोता हुआ
जाएगा फिर न वहाँ सच की हिमायत लेकर

अपनी मर्ज़ी से हर इक काम बशर करता है
मानता कोई नहीं आज नसीहत लेकर

बहरे हाकिम हैं , हुकूमत को कहाँ फ़ुर्सत है
जाएँ तो जाएँ कहाँ अपनी शिकायत लेकर

जब नहीं कोई गवाही तो करे क्या मुन्सिफ़
कोई तो आए अदालत में हक़ीक़त लेकर

सबने पैग़ामे मोहब्बत ही दिया दुनिया को
जो भी उस पार से आए हैं हिदायत लेकर

भीड़ लोगों की तेरे दर पे है मेरे मौला
हर कोई आता यहाँ अपनी ज़रूरत लेकर

दौर 'आनन्द' तकब्बुर का , दिखावे का है
कौन सुधरा है यहाँ कितनी भी ताक़त लेकर