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कामकाजी पत्नी / सुशान्त सुप्रिय

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दफ़्तर से लौटकर
थकी-हारी आती है वह तो
महक उठती है
घर की बगिया

बच्चे चिपक जाते हैं
उसकी टाँगों से जैसे
शावक हिरणी से

उन्हें पुचकारती हुई
रसोई में चली जाती है वह
अपनी थकान को स्थगित करती
दूध-चाय-नाश्ता
ले आती है वह

उसे देखता हूँ
बेटी को पढ़ाते हुए तो
लगता है जैसे
कोई थकी हुई तैराक
बहादुरी से लड़ रही है
लहरों से

' आज खाना बाहर से
मँगवा लेते हैं ' --
मेरी बात सुनकर
उलाहना देती आँखों से
कहती है वह --
' मैं बना दूँगी थोड़ी देर में
ज़रा पीठ सीधी कर लूँ '

दफ़्तर के काम से जब
शहर से बाहर
चली जाती है वह तब
अजनबी शहर में
खो गए बच्चे-से
अपने ही घर में
खो जाते हैं
मैं और मेरे बच्चे
सूख जाता है
हमारे दरिया का पानी
कुम्हला जाते हैं
हमारे तन-मन के पौधे

इस घर की
धुरी है वह
वह है तो
थाली में भोजन है
जीवन में प्रयोजन है

दफ़्तर और घर के बीच
तनी रस्सी पर
किसी कुशल नटी-सी
चलती चली जा रही है वह