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कर रहा हूँ अभी सफ़र तन्हा / गोविन्द राकेश
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कर रहा हूँ अभी सफ़र तन्हा
मिल गयी है मुझे डगर तन्हा
ख़्वाब में मैं उतर गया उनके
क्यों रहे मुंतज़िर नज़र तन्हा
वो मिलें तो गले लगा लूँ मैं
हो न पाता कभी ग़ुज़र तन्हा
घर यहीं अब बसा लिया जाये
दिख रहा इक यहाँ शजर तन्हा
यूँ तो राकेश भी निसार उस पर
बोल भी दे मिले अगर तन्हा