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आओ करें तर्पण / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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रिश्ते वे सारे
आओ करें तर्पण
बीच धार में
जो चुभते ही रहे
उम्रभर यों,
जैसे जूते में गड़ी
कील चुभती
रह-रह करके
जीवन भर
टीस ही देते रहे
वे क्रूर रिश्ते
जो लेना ही जानते
कुछ न देते
उलीच लेते साँसें
निष्ठुर लोग
सब कुछ ले लेते
जब देना हो
चुभती कील जैसे
दर्द ही देते
कर्त्तव्य की वेदिका
शीश लेकर
कभी तृप्त न होती
रक्त-पिपासु
सिर्फ़ प्राण माँगते
क्रूर वचन
क्रूस पर टाँगते
विष उगाते
अमृत कैसे बाँटें
जिह्वा की नोक
विष-बुझी छुरी-सी
आत्मा को चीरे
दग्ध करे मन को
जो साँसें बचीं
उनको समेट लें
तय कर लें-
रिश्तों के मज़ार पे
फ़ातिहा पढ़ लेगें।