सम्वाद / मिथिलेश कुमार राय
माई, प्रणाम !
ख़ुश रहो, बेटी !
सदा सुहागिन रहो !
दूधो नहाओ, पूतो फलो !
चाय हो गई, माई ?
हाँ बेटी, अभी-अभी ।
भोजन क्या अब भी देर से करती हो ?
क्यों करती हो ?
अब तो घर मे बहू है
आराम करो
खाओ-पीओ !
भाभी अभी क्या कर रही हैं ?
बच्चे को शान्त करा रही है,
घर मे दो-दो बच्चे हैं,
दिन भर उधम मचाए रहता है,
बेचारी को चैन नहीं ।
फिर भी बहुत ध्यान रखती है,
सुबह चार बजे जगकर
तेरे पिता के लिए चाय बनाती है ।
मैं जान-बूझकर बिछावन देर से छोड़ती हूँ
कि मेरी आँखों के सामने गृहस्थी सीख ले ।
तुम अपना सुनाओ, बेटी !
बच्चा सब ठीक है ?
और दामाद जी ?
यहाँ सब राजी-ख़ुशी है, माई !
आशीर्वाद है तुम लोगों का !
यह बताओ, भैया स्वास्थ्य पूछता है कि नहीं ?
हाँ, रोज़ शाम को कुछ देर पास बैठता है,
नहीं भी कहती हूँ तो रोग समझ जाता है,
कल दवाई लाकर दिया है,
कि सोने से पहले याद से पी लूँ ।
लेकिन बहू कभी-कभी डाँट देती है
समय से नहाने में चूक जाती हूँ तब ।
अच्छा है,
तुम वैसे सुधरोगी भी नहीं ।
ऐसे बेटे-बहू बड़े भाग्य से मिलते हैं ।
अब रखती हूँ,
कभी कोई दिक़्क़त हो तो ज़रूर कहना ।
प्रणाम !