Last modified on 23 फ़रवरी 2020, at 23:33

हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं / विष्णु सक्सेना

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:33, 23 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं।
मुहब्बत को बस इक भरम जानते हैं।

मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ,
थकन मेरी मेरे क़दम जानते हैं।

हमें भूल जाने की आदत है लेकिन,
तुम्हे हम तुम्हारी क़सम जानते हैं।

है छुपना कहाँ और बहना कहाँ है,
ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं।

छलकती है क्यों आँख हमको पता है,
कहाँ सब बिछड़ने का ग़म जानते हैं

दिया तो है मजबूर कैसे बताये
उजालों की तकलीफ तम जानते हैं

है जो कुछ मयस्सर हमें इस जहाँ में
हम उसको खुदा का करम जानते हैं।