भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नस्लभेद / अरविन्द भारती

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो एक रात थी
मासूम सी
निर्दोष सी

जिसके होंठों पर
लोरियाँ थी
और था एक वादा
मीठी नींद का

वो एक रात थी
उसका आना
निश्चित था
चाहे चाँद साथ हो
या ना हो
वो अपने वादे की
पक्की थी

पर
लोगो ने
उसे
बदनाम कर दिया
किसी ने काली कहा
किसी ने खौफनाक
और
किसी ने हत्यारी तक
कह दिया

वो फूट-फूट के
रोती रही
अपनी किस्मत पर
किसी से कुछ ना बोली
बस रोती रही
और सोचती रही
जिसके लिए
उसे बदनाम किया गया
वो सब काम तो
दिन में भी होते है
तो फिर उस पर ही
ये तोहमत क्यों?
क्या वह भी हो गई है शिकार
औरों की तरह
नस्लभेद की।