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नस्लभेद / अरविन्द भारती
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वो एक रात थी
मासूम सी
निर्दोष सी
जिसके होंठों पर
लोरियाँ थी
और था एक वादा
मीठी नींद का
वो एक रात थी
उसका आना
निश्चित था
चाहे चाँद साथ हो
या ना हो
वो अपने वादे की
पक्की थी
पर
लोगो ने
उसे
बदनाम कर दिया
किसी ने काली कहा
किसी ने खौफनाक
और
किसी ने हत्यारी तक
कह दिया
वो फूट-फूट के
रोती रही
अपनी किस्मत पर
किसी से कुछ ना बोली
बस रोती रही
और सोचती रही
जिसके लिए
उसे बदनाम किया गया
वो सब काम तो
दिन में भी होते है
तो फिर उस पर ही
ये तोहमत क्यों?
क्या वह भी हो गई है शिकार
औरों की तरह
नस्लभेद की।