Last modified on 26 फ़रवरी 2020, at 20:04

एक प्रेम कविता / पूनम मनु

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:04, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम मनु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धड़कनों में उलझती
यहाँ वहाँ भीतर ही बिखर जाती
क्यों मुझसे
एक प्रेम कविता नहीं लिखी जाती
आँखों की लाल धारियों में
अटक जाता है प्रेम
बार-बार ही
कलम में स्याही की जगह
ठहरता क्यों नहीं
सुर्ख होंठों की मासूम हंसी में
लजाकर सिमट जाता नाशुक्रा
शिशु-सा सहम
हृदय से लिपट जाता
नहीं उतरता
ठहरता कविता बन प्रेम
कागज़ पर
क्यों...?
प्रेम,
जिस पर
लिखते हो तुम कविता रोज ही
मैं क्यों चाह कर भी
नहीं लिख पाती।