भरपूर
करुणा
नेह और
दुलार
स्वभाव में लिए
वह सहती है
असहनीय पीड़ा
हिय की प्रसूति से
नवजात तक की यात्रा में
बावजूद इसके
ताउम्र
वह पोंछती है
बांटती है
दूसरे का दुख-दर्द
ये कविता है कि
स्त्री है...!
भरपूर
करुणा
नेह और
दुलार
स्वभाव में लिए
वह सहती है
असहनीय पीड़ा
हिय की प्रसूति से
नवजात तक की यात्रा में
बावजूद इसके
ताउम्र
वह पोंछती है
बांटती है
दूसरे का दुख-दर्द
ये कविता है कि
स्त्री है...!