Last modified on 26 फ़रवरी 2020, at 20:17

प्रेम / पूनम मनु

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम मनु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शुरू पूस की एक मध्य रात्रि
मैं जाग नहीं, सो रही हूँ सारे जग के लिए
सिहरती ठंड में
रज़ाई से बाहर मुख करते ही
समझ जाएंगे सब
मेरे सोने की कहानी

लिहाफ़ के अनंत आकाश तले
मैं लिख रही हूँ साँसो से नींद के ऊपर चौपाई
कि-रात के दो बजे नहीं लिखे जाते प्रेम ग्रंथ
इस पर केवल बिरह का शासन है

गीली साँसों की हरारत से
जाग जाएगा प्रेम
जानती हूँ मैं

इसके लिए
चाँद पहर में
खिड़की खोलकर
सर्द हवा से खेलने की ज़रूरत नहीं
बायीं करवट के लेते ही
कंधे के नीचे धड़कने लगता है प्रेम!