भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक बार उनसे बात हो / रामश्याम 'हसीन'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामश्याम 'हसीन' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इक बार उनसे बात हो, ये चाहता हूँ मैं
हाथों में उनका हाथ हो, ये चाहता हूँ मैं
परवाह मुझे कब है ज़माना कहेगा क्या
हर वक़्त उनका साथ हो, ये चाहता हूँ मैं
कठिनाइयों की धूप में झूलसूँ में जब कभी
मन में शबे-बरात हो, ये चाहता हूँ मैं
जिसमें हमेशा प्यार की बातें हों हर तरफ़
इक ऐसी काइनात हो, ये चाहता हूँ मैं
क़ुदरत को जिसपे नाज़ हो, दुनिया को जिससे इश्क़
कुछ ऐसी मेरी ज़ात हो, ये चाहता हूँ मैं