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ज़िन्दगी से ख़ुद बड़ी है ज़िन्दगी / रामश्याम 'हसीन'
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ज़िन्दगी से ख़ुद बड़ी है ज़िन्दगी
फिर भी क्यूँ ज़िद पर अड़ी है ज़िन्दगी
इसने ग़ैरत का पियाला क्या पिया
खो के अब सुध-बुध पड़ी है ज़िन्दगी
मैंने कल छोड़ा उसे जिस मोड़ पर
बस वहीं अब तक खड़ी है ज़िन्दगी
इससे मैंने इक ख़ुशी क्या माँग ली
हर नफ़स मुझसे लड़ी है ज़िन्दगी
क़ैद में जिस्म की हर एक रूह
साँस बेड़ी, हथकड़ी है ज़िन्दगी