भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी से ख़ुद बड़ी है ज़िन्दगी / रामश्याम 'हसीन'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामश्याम 'हसीन' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी से ख़ुद बड़ी है ज़िन्दगी
फिर भी क्यूँ ज़िद पर अड़ी है ज़िन्दगी

इसने ग़ैरत का पियाला क्या पिया
खो के अब सुध-बुध पड़ी है ज़िन्दगी

मैंने कल छोड़ा उसे जिस मोड़ पर
बस वहीं अब तक खड़ी है ज़िन्दगी

इससे मैंने इक ख़ुशी क्या माँग ली
हर नफ़स मुझसे लड़ी है ज़िन्दगी

क़ैद में जिस्म की हर एक रूह
साँस बेड़ी, हथकड़ी है ज़िन्दगी