वही चेहरा पुराना चाहिए था
मुझे गुज़रा ज़माना चाहिए था
मैं नाहक डर रही थी आइनों से
मैं पत्थर हूं, बताना चाहिए था
निहायत पाक है मेरी महब्बत
तुम्हें तो सर झुकाना चाहिए था
ग़ज़ल हम भी मुकम्मल कर ही लेते
कोई मौसम सुहाना चाहिए था
बिछड़ कर भी नहीं बिखरी हूं ख़ुशबू
मुझे तो टूट जाना चाहिए था