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मुक्तक: स्वतंत्रता / रोहित आर्य

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नहीं निश्चिन्त होकर अपने, घर पै हम यूँ सो पाते,
न हरगिज़ मुस्कराते न, ख़ुशी के बीज बो पाते,
शहीदों का है हम पै कर्ज, ऐ भारत के वासिन्दों,
शहादत वह न देते तो, न हम आज़ाद हो पाते॥

उन्हीं के रक्त के दम से, हैं हम आबाद हो पाए,
दिया बलिदान तो परतन्त्रता, के दाग धो पाए,
तो करके याद उन वीरों को, उनकी वन्दना कर लो,
शहीदों की बदौलत ही, तो हम आज़ाद हो पाए॥

बदन ये काँप जायेगा, तुम्हारा रक्त उबलेगा,
शिराओं में भरा लावा, तुम्हारा क्षण में पिघलेगा,
उन्होंने मुल्क़ की ख़ातिर, थी झेलीं यातनायें जो,
पढ़ोगे उस कहानी को, लहू आँखों से निकलेगा॥

उठाकर हाथ में परचम, यहाँ हर व्यक्ति झूमा था,
वतन पै जाँ लुटाने को, मगन होकर के घूमा था,
फटी गोरों की छाती देख, कर के इस शहादत को,
यहाँ हँस-हँस के वीरों ने, स्वयं फाँसी को चूमा था॥

सही बलिदानियों ने थी, भयानक मार कोड़ों की,
नहीं मिलती दवाई थी, बदन पै निकले फोड़ों की,
न इसका मूल्य हरगिज़, आँक पाओगे वतन वालो,
है ये अनमोल आज़ादी, न केवल है करोड़ों की॥

ये आज़ादी नहीं हमने, सुनो चरखे से पाई है,
जवानों, बूढ़ों, बच्चों, नारियों ने जाँ गँवाई है,
मिला अनमोल तोहफा, हमको लोहू के बहाने से,
शहीदों के लहू पै तैर के, भारत में आई है॥

यहाँ छोटे से बच्चों की, शहादत काम आई है,
अठारह वर्ष तक के बच्चों, ने भी फाँसी खाई है,
पड़े कोड़े बदन पै तब भी, वन्दे मातरम बोला,
उन्हीं बच्चों के लोहू से, ये आज़ादी नहाई है॥

बहा था रक्त कितनी, नारियों का था इसी रण में,
बिछाईं कितने गोरों की, उन्होंने लाश आँगन में,
कभी लक्ष्मी, कभी दुर्गा, का धर के रूप हुँकारी,
दिलाने हमको आज़ादी, किया बलिदान जीवन में॥

लहू इस मुल्क की ख़ातिर, ही लाखों ने बहाया है,
लुटा कर जाँ वतन पै, भारती का ऋण चुकाया है,
मेरे भारत के वासिन्दों, उतारो आरती उनकी,
कि जिन लोगों के दम से, हमने आज़ादी को पाया है॥

कभी ये पर्व आज़ादी, का यूँ रुकने न देंगे हम,
शहादत याद रक्खेंगे, उसे चुकने न देंगे हम,
मिला ये लाल रंग हमको, शहीदों के लहू से है,
तो अपना रक्त दे देंगे, इसे झुकने न देंगे हम॥

कि हम आज़ाद हैं यह सोचकर, हर व्यक्ति झूमेगा,
मेरे भारत का वासी गर्व से, दुनियाँ में घूमेगा,
कि जब तक हम हैं जिन्दा, यह कदापि झुक नहीं सकता,
तिरंगा अपना तब तक, इस गगन को यूँ ही चूमेगा॥

शहीदों के लहू का कर्ज, हमसे चुक नहीं सकता,
उबलता ही रहेगा रक्त, अपना रुक नहीं सकता,
तो दुनियाँ में सभी के सामने, ऐलान ये कर दो,
कि जब तक हम हैं जिन्दा, ये तिरंगा झुक नहीं सकता॥