भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अवनि, घर में हो क्या / शक्ति चट्टोपाध्याय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 16 मार्च 2020 का अवतरण
मुहल्ले में सुत्ता है, बन्द दरवाज़े
रात के हाथों, सुनो, साँकल बाजे
"अवनि, घर में हो क्या?"
बारह महीने यहाँ होती बरसात
गायों-से विचरते हैं मेघ हर ओर
पलटकर हरी घास बढ़ाती हाथ
छूने को मेरे दरवाज़े की कोर --
"अवनि, घर में हो क्या?"
अधडूबे दिल में कुछ दूर से आती
व्यथा के बीच जब नींद आ जाती
एकदम सुनता हूँ रात की दस्तक -
"अवनि, घर में हो क्या?"
शिव किशोर तिवारी द्वाराम मूल बांग्ला से अनूदित