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मनोभाव / मनीष मूंदड़ा
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काले मेघ भरे हुए नन्ही बूँदों से
मेरे मनोभावों की तरह
उन बुँदों को छोड़ देने का संताप
वैसे ही जैसे कई बार छूट जाती हैं हसरतें
और बह जाते है एहसास और जज्बात के रेले
उस बरसात की तरह
उमड़ती घटायें क्यों लगती हैं
मुझे मेरे मन की तरह
विरह की वेदना लिए
जो कभी खामोश
कभी बाहर आने को बेताब
मचलते जज्बातों को लेकर
जिए जा रहा है...
यह मेरा मन
काले मेघों की तरह...