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मैं और तुम / मनीष मूंदड़ा

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देखो आज फिर ये शाम ढल रही हैं
इन बादलों में छुपता छुपाता सूरज भी अब इस रात के लिए
अलविदा कहने को हैं
काश तुम और मैं इस मंजर को देख पाते

थोड़ी देर में ये पंछी भी गुम हो जाएँगे
सो जाएँगे अपने-अपने आशियाने में
थम जाएगा इनका कलरव आज के लिए
काश तुम और मैं इस ख़ामोशी को सुन पाते

अब कुछ ही देर में बादलों से चाँद अठखेलियाँ करेगा
अपनी चाँदनी बिखेरेगा
हमारी खिड़कियों के रास्ते घर तक
काश तुम और मैं इस चाँदनी रात में फिर से एक हो पाते...