Last modified on 20 मार्च 2020, at 23:21

मैं और तुम / मनीष मूंदड़ा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 20 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखो आज फिर ये शाम ढल रही हैं
इन बादलों में छुपता छुपाता सूरज भी अब इस रात के लिए
अलविदा कहने को हैं
काश तुम और मैं इस मंजर को देख पाते

थोड़ी देर में ये पंछी भी गुम हो जाएँगे
सो जाएँगे अपने-अपने आशियाने में
थम जाएगा इनका कलरव आज के लिए
काश तुम और मैं इस ख़ामोशी को सुन पाते

अब कुछ ही देर में बादलों से चाँद अठखेलियाँ करेगा
अपनी चाँदनी बिखेरेगा
हमारी खिड़कियों के रास्ते घर तक
काश तुम और मैं इस चाँदनी रात में फिर से एक हो पाते...