भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दृश्यम / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 21 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रकृति के चिलमन से
छलकती रोशनी
कितना मनोरम ये दृश्य
कितना आत्मीय ये सौंदर्य
नयनाभिराम!
आओ, आँखों से अपने अंदर उतारें
उल्हासित
प्रह्लादित
स्फुटित हो जाएँ