भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रश्न चिन्ह / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:30, 22 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंशु हर्ष |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ज़िन्दगी जीते हुए एक दिन अचानक
अहसास होता है कि
ये जो हाड़ मॉस का बना शरीर है
इसे चलाने के लिए एक रूह रहती है इसके अंदर
और उस रूह की कई परतें है
कई जन्मों का लेखा जोखा लिए
ये परतें खुलती जाती है उम्र के साथ
और हम प्रश्नचिन्ह लगाकर
उन लम्हों के आगे कई सवाल खड़े कर देते है
जवाब कुछ नहीं मिलता
मन की परतें जो कहती है
उसे मानते चले जाते है
यादें , आँसू , सपने , शब्द
सब उन्हीं परतों के बीच
खुद को उलझा पाते है
इन्हीं परतों के बीच ही तो
खुद के होने की वज़ह
समझ पाते है