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दोस्त / अंशु हर्ष

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जब मिलो मुझसे
तो वैसे ही मिलना
जैसे पहले मिला करते थे तुम
रेत के लड्डू फेकते हुए
मुझे तुम्हारे ब्रांडेड कपड़ों का ख्याल ना करने पड़े
रेत के घरोंदे बनाते हुए
तुम्हारे महंगे जूतों की फिक्र ना हो
चाय की चुस्कियों के साथ
पारले जी का बिस्किट तुम्हे भी याद आए
मिलो अगर तारों की छाया में तो यूँ ही मिलना
जैसे बिंदु मिलाते थे बचपन में
घटाओं में कभी मिल जाओं तो
वहीं आकार बनाना बादलों के
बारिश की बरसती बूंदों में मिलो तो भीगने से डरना मत
बहा देना इसमे सब दर्द जीवन के
चाँद की चांदनी में मिलों अगर
तो बाहें फैला समेट लेना उस चाँदनी को दामन में
सूरज की रोशनी में मिलों तो
मैग्निफाइंग ग्लास से जला देना सारे शिक़वे
कभी मिलो मुझसे तो मुझे मेरे वही दोस्त बन के मिलना
जिसके साथ से मुझे पूर्णता का अहसास है
पद प्रतिष्ठा को परे रख कभी मिलना मुझसे
उसी में हमारे जीवन की मिठास है