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मन / अंशु हर्ष

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मेरा मन
जो अनवरत चलता रहता है
विचारों का सैलाब लिए
बिना ठहरे बिना थके
मीलों दूर सदियों तक
अ मन होने की दौड़ में
लेकिन मन क्या ठहराव पाता है ?
क्योकि जब मन ठहर जाता है
तो मन कहाँ रह पाता है
अ मन हो जाता है
तब एक अनुभूति होती है
आत्मतत्व की पहचान की