Last modified on 23 मार्च 2020, at 22:35

नमक का स्वाद / संतोष श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:35, 23 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखा है कभी
नमक के खेतों के बीच
उन कामगारों को
जो घुटने तक प्लास्टिक चढ़ाए
चिलचिलाती धूप में
ढोते हैं नमक

दूर-दूर तक कहीं
साया तक नहीं होता
पल भर बैठ कर सुस्ताने को
अगर साया होता
तो क्या बनता नमक
तो क्या मिलती कामगारों को
दो वक्त की सूखी रोटी

शाम के धुंधलके में
अपने गले हुए पांवों को सिकोड़
चखता है वह
हथेली पर रखी रोटी
और रोटी के संग
नमक की डली का स्वाद

सत्ता ने जो बख्शा है उसे
दूसरों के भोजन को
सुस्वादु बनाने के एवज
महरूम रखकर सारे स्वादों से