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मजदूर / संतोष श्रीवास्तव

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तुम लिखना इतिहास
अपने आंसुओं का
लिखना कि प्यार की
दीवानगी में ताज महल तो बना
पर नहीं बना तुम्हारा झोपड़ा
वहशी दीवानगी ने तोड़ दी हदें
इंसानियत की
बर्बरता को मात देता ऐलान
कि काट लो हाथ
फिर कभी न बने ताजमहल दूसरा

यह कैसी दीवानगी
जिसमें पाक मोहब्बत न थी
हुकूमत का नशा
खुद को खुदा मान लेने की
आसमानी अकड़

तुम जिनके लिए महल,
बुर्जियाँ, परकोटे और झरोखे
तामीर करते हो
सत्ता उन्हीं ऊंचाइयों पर चढ़कर
कसती है नकेल तुम पर
कैसे लिखोगे इतिहास
तुम्हारे हिस्से तो
ज़हालत, भुखमरी और अंधेरे हैं
जो सौंपे हैं सत्ता ने तुम्हें
क्योंकि उसके मुंह तुम्हारा खून
जो लग चुका है