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अपनी शर्तों पर / संतोष श्रीवास्तव

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मेरा एकांत
अपनी ज़िन्दगी से
थोड़ा-सा हिस्सा चुरा
अपने हिसाब से
अपनी दुनिया गढ़ लेता है
एक ऐसा कोलाज रच लेता है
जहाँ सब कुछ
मर्जी के मुताबिक हो ...

फिर भी दिल में कसक क्यों
कि ज़िन्दगी मुकम्मल नहीं
मुकम्मल होती तो
तलाश रुक जाती ...
कोलाज पूरा हो जाता ...
मैं ठहर जाती ...
और मैं ठहरना
चाहती नहीं ...