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पुरवइया के झोंका / सुभाष चंद "रसिया"
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घुमड़-घुमड़ के बरस जा बदरा,
आके हमारी गॉव में।
थिरकन होला मन्द पवन से,
आज हमारी पाँव में॥
घटा घिरल घनघोर गगन में,
नाचे मनवा मोरा।
पुरवइया के झोका से अब,
मन में उठे हिलोरा॥
लहर-लहर लहराला मनवा,
पेड़वा के ही छाँव में॥
प्यासी धरती प्यासा अम्बर,
पानी के एक बूंद के।
कोई नहीं अब लाता क्यो,
पानी को अब ढूढ़ के॥
अरमा के अब फूल खिलल बा,
जग के सारा गॉव में॥