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सगुनवा बतावे / सुभाष चंद "रसिया"
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उड़ी-उड़ी केसिया सगुनवा बतावे।
अचरवा हो गोरी हमके बुलावे॥
बहे पुरुवइया पवन झकझोर के।
पोरे-पोरे ऊठे लहरिया चकोर के।
गतर-गतर बेनिया पवनवा डोलावे॥
अचरवा हो गोरी हमके बुलावे॥
सोलहो सिंगार बत्तीसी रंग अभरंग।
गरवा में शोभेला गोरी के नव रंग।
पैरन में पायलिया सरगम बजावे॥
अचरवा हो गोरी हमके बुलावे॥
ओढ़ के निकलेलु जब चुनर धानी।
अचके उतरी गइलू स्वर्ग के रानी।
तोहार तिरछा कजरवा बेदर्दी सतावे॥
अचरवा हो गोरी हमके बुलावे॥
कवनी नगरिया से बाड़ू जादूगरनी।
तोहरी ही चक्कर में सुख चैन हरनी।
तोहार आँख के पुतरिया बिजुरी गिरावे॥
अचरवा हो गोरी हमके बुलावे॥