भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम नगरिया बसा दिहल / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 27 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष चंद "रसिया" |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बिधना प्रेम नगरिया बसा दिहल।
अब नेहिया से नेहिया मिला दिहल॥
बुलबुल गावे मोरनी नाचे दादुर ताल बजावे।
सात सुरो के सरगम से कोयल राग सुनाये।
नीले-नीले अम्बर से मोती के बरसा दिहल॥
बिधना प्रेम नगरिया बसा दिहल॥
हरियाली वन वैभव में गमके केसर क्यारी।
जन-जन में सद्भभाव भरल, लागे दुनिया न्यारी।
नेह निमंत्रण देके हमके "रसिया" जी भरमा दिहल॥
बिधना प्रेम नगरिया बसा दिहल॥