भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नये साल के खेल नये / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 29 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नये साल में क्यों न खेलें,
खेल सभी हम नये-नये।
नये खेल में हम सब मिलकर,
कूड़ा करकट बीने॥
नया खेल हो ऐसा जिसमें,
स्वच्छ जल मिले पीने।
नये तरीके साफ़ सफाई,
के नित ढूँढे नये-नये।
नये खेल में बंद करें हम,
रोज सवारी करना।
नये खेल में हर दिन सीखें,
पैदल भी कुछ चलना।
धूंआ, विष भरी गैसें कम हों,
हों उपाय कुछ नये-नये।
नये खेल हों, काम आयें जो,
पर्यावरण बचाने।
कैसे बढ़ता रोज प्रदूषण,
हम बच्चे भी जाने।
नये खेल में सभी खिलाडी,
पौधे रोपें नये-नये।
नये खेल में तरुओं की हम,
रोज रखें निगरानी।
पेड़ काटना हो जाये अब,
बिसरी हुई कहानी।
इन्हें बचाने के उद्यम हों,
सभी और से नये-नये।