भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नए साल की कनकैया / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 29 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मजे-मजे से मस्ती करते,
साल बिताया भैयाजी।
बुड़की पर मझले चहु संग,
खूब उडी कनकईयाजी।
इस होली में नानी के घर,
कितने मजे उड़ाए थे।
नानाजी पिचकारी के संग,
टेसू के रंग लाये थे।
ममी के संग गए खेत में,
खाई गुड़ की लैयाजी।
दीवाली में फुलझड़ियों से,
फूल झरे थे मस्ती के।
दिए जलाये हर कोने में,
हमने अपनी बस्ती के।
ढोल मजीरे लेकर आये,
घर पर ग्वाल नचैया जी।
नए साल आने की खुशियाँ,
तो हम खूब मनाएंगे।
गए साल की मीठी बातें,
क्या हम बिसरा पाएंगे?
भरेरहेंगे स्मृतियों के,
हरदम ताल तलैयाजी