भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूढ़े आदमी-औरत की बातचीत / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 31 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नरेन्द्र जैन |अनुवादक= |संग्रह=दर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जॉर्ज फ्लेमिंग की कृति 'इन द कैसल ऑव माय स्किन' के दो पात्रों से प्रेरित
माँ
हाँ पा
पा
हाँ माँ
कितना जी लिए हम, है ना
हाँ माँ, कभी - कभी बहुत अन्धेरा लगता है
हाँ पा, रोशनी कब रही हमारी दुनिया में
क़ब्र में लटके हैं
गाँव कहता है
हाँ माँ, क़ब्र में लटके हैं
ग़ुलाम अब भी बिक रहे
हाँ पा, सौ बरस गुज़र गए यही देखते
माँ
हाँ पा
तुम कहती थीं सब ठीक हो जाएगा
हाँ पा, सब ठीक हो जाएगा
पा
हाँ माँ
हम फिर क़ब्र से लौटेंगे इधर
हाँ माँ, हम लौटेंगे
पा
हाँ माँ
तुम ठिठुर रहे हो आओ गोद में
याद है, जब तुम बच्चे थे
गर्म - गर्म नींद, मीठे सपने
हाँ माँ. याद है जब बच्चे थे
माँ
हाँ पा
हम फिर बच्चे होंगे
हाँ पा
नए - नए बच्चे
नई - नई ज़मीन
हाँ
माँ
हाँ पा