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एक दिन शिनाख़्त / नरेन्द्र जैन
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एक दिन
हमसे पूछा जाएगा
हम क्या कर रहे थे ?
एक दिन
हमसे पूछा जाएगा
हमारी नीन्द कितनी गहरी थी ?
एक दिन
हमसे पूछा जाएगा
हमारी आवाज़ कौन छीनकर ले गया ?
एक दिन
हमसे पूछा जाएगा
हमारी आँखों को एकाएक क्या हुआ ?
एक दिन
हमारी नब्ज़
टटोली जाएगी
एक दिन
कतार में खड़े
हम
अपनी अपनी सज़ा का
इन्तज़ार कर रहे होंगे