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ग्यारहवाँ घर / नरेन्द्र जैन

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घर से बाहर का दुख
घर के अन्दर के दुख से बड़ा था

इसे उसने इस तरह कहा कि
घर का दुख घर भर दुख था
और बाहर का दुख देश भर दुख
घर के अन्दर दुख के नाम पर उदासी थी
भाँय - भाँय करती थीं दीवारें

घर दुखी है — उसने कहा
देश दुखी है — उसने बतलाया
उसकी दृष्टि में देश भी एक घर ही था

एक विशालकाय मध्यकालीन हवेली
जिसके बुर्ज टूट रहे थे
और नींव दरक रही थी जगह-जगह से
जंग खाए बन्द पड़े थे हज़ारों दरवाज़े

एक आदमी का सुख
कारण था करोड़ों के दुख का
घर में कमाता था एक
खाते थे दस
देश में कमाते थे करोड़ों
और खाते थे दस

सुख था ज़रूर
और सुखी होने के लिए ज़रूरी था
कि बनाया जाए देश में ग्यारहवाँ घर