भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वेदना की इस घड़ी में / नमन दत्त
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 31 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नमन दत्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वेदना कि इस घड़ी में, हे प्रभू मत साथ छोड़ो ।
ये जगत मुँह मोड़ता है, आप तो मुँह को न मोड़ो ।
हैं समर्पित आस्था के फूल,
लो स्वीकार कर लो–
रागिनी उर की पुकारे,
स्वर ये एकाकार कर लो–
भावनाएँ न विफल हो जायें, यूँ नाता न तोड़ो ।
वेदना कि इस घड़ी में...
हम बुरे हैं और कलुषित,
हैं मगर फिर भी तुम्हारे–
तुम ही न दोगे सहारा,
तो रहें किसके सहारे–
इस घड़ी में साथ दे दो, आज निज प्रभुता को छोड़ो ।
वेदना कि इस घड़ी में...