Last modified on 31 मार्च 2020, at 15:11

अनचाहे अनजाने पल / नमन दत्त

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 31 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नमन दत्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अनचाहे अनजाने पल।
खोए कहाँ सुहाने पल।

नागफ़नी के काँटों से,
मरुथल से वीराने पल।

कौन, कहाँ, कब, क्यूँ, कैसे,
लगे सवाल उठाने पल।

रात तुम्हारी यादों के,
आ बैठे सिरहाने पल।

ख़ामोशी के आलम में,
बीते कितने जाने पल।

तेरे जिस्म की ख़ुशबू के,
देकर गये ख़ज़ाने पल।

दरिया संग किनारे भी,
कैसे लगे बहाने पल?

उस बरगद की छाँव तले,
बैठ रहे सुस्ताने पल।

जीवन रेत पर बिखर गये,
मोती के थे दाने पल।

तेरी मेरी दूरी के,
फिर आ गये जलाने पल।

जाने फिर कब लौटेंगे,
वो गुज़रे दीवाने पल।

तुम और मैं, हम हो बैठे-
थे कितने मनमाने पल।

सदियों पर इल्ज़ाम बने,
निकले बहुत सयाने पल।

इस दुनिया में ऐ "साबिर"
कौन है क्या? न जाने पल।