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पृथ्वी पर काली छाया / गणेश पाण्डेय

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पृथ्वी पर
एक विशाल काली छाया
उतर आई है पास और पास
बरगद पर पीपल पर
मन्दिर पर मस्जिद पर चर्च पर
ऊँची-ऊँची
बहुमंज़िली इमारतों से लेकर
फ़ुटपाथ की गुमटियों पर
झोपड़ियों पर
वायुयान पर साइकिल पर
मिसाइल पर फाउण्टेन पेन पर
माल पर सब्ज़ी की दुकान पर
नाई के सैलून पर आटाचक्की पर

अमरीका पर
इटली पर स्पेन पर जर्मनी पर
ईरान पर पाकिस्तान पर
दिल्ली पर कोलकाता पर
मुम्बई पर श्रीनगर पर
राजस्थान पर मध्यप्रदेश पर
उत्तर प्रदेश पर बिहार पर
नेपाल पर बांग्लादेश पर
चीन पर जापान पर
देश पर विदेश पर
धरती पर आकाश पर

काली से भी काली छाया
महा से भी महाकाली छाया
बूढ़े अधेड़ जवान बच्चे
स्त्री पुरुष किन्नर सबपर
छाई है यह अनाहूत
अप्रिय अवांछित
छाया

कोई जादू है इसके पास
सबको फाँस लिया अपने पाश में
काला जादू है किसी जादूगर का
जादूगर अदृश्य है छाया दृश्य है
अनुभवजन्य है

कोई जानकार
माथे का ताप देखकर बता सकता है
छाया अमुक शरीर के भीतर है
उतर रही है छाया उसके गले से
उसके फेफड़े में शनैः - शनैः
हवाईअड्डे पर रेलवे स्टेशन पर
बस अड्डे पर गायिका के बड्डे पर
अस्पताल की सफ़ेद चादर पर
मिट्टी के फ़र्श पर संगमरमर पर
छाया का साम्राज्य है
यह छाया जितनी प्रकट है
उतना राज़ है काला जादू है

कोई कहता है
शी चिन फिंग का कालाजादू है
वुहान से निकलती है यह प्रेतछाया
पूरी दुनिया पर छा जाती है
बीजिंग शंघाई को छोड़ देती है
आख़िर शी उसका कौन है
शी कहता है यह कालाजादू
डोनाल्ड ट्रम्प का है
पूरी दुनिया हलकान है
इन दोनों की शरारतों से

दुनिया बन्द है
किसी शहर और मुहल्ले की तरह
एक छोटी-गुमटी की तरह
माचिस की डिबिया की तरह बन्द
एक विश्वव्यापी कर्फ़्यू है इमरजेंसी है
भय की एक पूरी दुनिया है
पता नहीं यह काली छाया
कहाँ-कहाँ अपने विशाल पग धरेगी
कहाँ-कहाँ कोमल उँगलियाँ फिराएगी
महासुन्दरी के घने लम्बे केशों में
उसके रक्ताभ कपोलों पर अधरों पर
किस सुन्दरी के प्राणप्रिय पतिदेव को
सहसा कहीं से खींचकर
अपने तम के पाश में सुला लेगी
अपने अरूप रूप से बेसुधकर
किसी सुगन्ध की तरह उसके सांसों में
बस जाएगी

किसी पिता को
राशन चाहे सब्ज़ी की दुकान पर
पकड़ लेगी कोई भी रूपधर
चाहे बालरूप धरकर
चलती चली आएगी उँगली पकड़कर
किसी के घर
किसी के भाई की मोटरसाइकिल पर
बैठकर चाहे उसकी कलाई पर
राखी की तरह चिपक कर
बेटी हो या बहन पत्नी हो या माँ
कोई उसे अपनी आँखों से
देख नहीं पाएगी मति मारी जाएगी
निश्चिन्त हो जाएगी
उसे पता ही नहीं चलेगा
कि थैले के ऊपर गोभी पर मूली पर
मिठाई के डिब्बे पर बर्फ़ी पर बैठकर
कौन आ गया है उसके घर
किसी को मालूम नहीं
किसी समारोह में किसी भीड़ में
किसी जुटान में किसी के संग
कब किसकी देह से कूदकर
बैठ जाएगी किसपर

आधा दृश्य और आधा अदृश्य
इस काली छाया को कभी
चश्मा लगाकर भी
कोई देख नहीं पाएगा
कभी नंगी आँखों से आप से आप
कोई छाया आसपास दिख जाएगी
चलती-फिरती नाचती
कानों के पास भनभनाती

एक बुजुर्ग के कानों में
काली छाया की यह गूँज बढ़ते-बढ़ते
पृथ्वी के महासन्नाटे को चीरती हुई
विस्फोट में बदल जाती है
पूरे ब्रह्माण्ड में यह आवाज़
बादलों
और बिजली की गड़गड़ाहट की तरह
गरज उठती है- कोरोना कोरोना कोरोना
सूर्य-चन्द्र और दूसरे ग्रह-उपग्रह
सब चकित सारे देवी-देवता स्तब्ध
ओह पृथ्वी महासंकट में है

किसी के पास नहीं है कोई उपाय
पृथ्वी के किसी धर्म किसी ग्रन्थ
किसी के पास नहीं है
विपदा का दूर करने का कोई मन्त्र
सारे मन्दिर-मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारे बन्द
बड़े-बड़े धर्माचार्यों के फूले हैं
हाथ-पाँव

दिन हो रात हो सब एक जैसा है
टीवी के एक-एक चैनल पर
एक-एक एंकर के लिपे-पुते चेहरे पर
काली छाया की एक मोटी परत है
महिलाओं एंकर की लिपिस्टिक
होती है लाल और दिखती है काली
और काजल पर काली छाया की छाया है
टीवी के सामने बैठे बूढ़े
समाचार नहीं मृत्यु देखते हैं
पृथ्वी पर महामृत्यु का नंगानाच देखते हैं
हर चीज़ में
चील की तरह मण्डराती काली छाया देखते है

पूरी दुनिया
एक विशाल शवगृह में बदल गई है
मृत्यु का एक महाठण्डाघर जिसमें
बैठकर यह काली छाया खाएगी
एक-एक शव नोच-नोच कर

दुनिया के किसी दारोगा के पास
इतनी हिम्मत नहीं होगी कि उससे पूछे
यह क्या कर रही है काली बुढ़िया
अभी और कितने शव चाहिए तुझे

कह दो
कह दो कह दो दुनिया से कह दो
कोई नहीं है अब यहाँ महाशक्ति
सब मिट्टी के खिलौने हैं
पुतले हैं पुतले सारे एण्टीमिसाइल
नहीं है कोई लड़ाकू जहाज़ और टैंक
जो रोक सके काली छाया की आन्धी

बच्चो और युवाओ
इस समय पृथ्वी पर सबसे भयभीत हैं बूढ़े
इसलिए नहीं कि काली छाया को
पकी हुई देहें बहुत प्रिय है
उन्हें खा जाएगी
उन्हें डर है कि उनके बहाने
उनका घर देख लेगी
उनके बच्चों को देख लेगी

बूढ़े
बहुत से बहुत डरे हुए हैं बच्चो
वे अपने नन्हे-नन्हे पोतों को
उठाकर गोद में नहीं ले रहे हैं
दिल बहुत मचलता है
उनके नन्हें होंठ चूम नहीं पा रहे हैं
इसलिए कि काली छाया उनकी खोज में
तमाम समुद्र तमाम आकाश को छानकर
एक कर रही है

एक दादी है
जरा-सा छींक आ जाए तो इस उम्र में
पूरे घर में पोंछा लगाने लगती है
बच्चों को ख़ुद से दूर भगाने लगती है
कामवाली बाई को हटा दिया है
दूध लेने बाहर नहीं जाती है
अपने बूढ़े को भी बिस्तर पर
दूसरी करवट सोने के लिए कहती है

यह कैसी काली छाया है
अभी खाएगी कितने घर
कब जाएगी अपने देश अपने घर
कहाँ है इसका घर
क्या वुहान है इसका घर
जहाँ भी हो इसका घर
जाए अपने घर
दादी कहती है चाहे अपने
शी चिन फिंग के सिर पर
चाहे किसी समुद्र में फाट पड़े

टीवी तो नहीं फटती है
लेकिन टीवी के सामने बैठे बुजुर्गों का
रोज़-रोज़ कलेजा फट रहा है
जो बच्चे घर पर हैं उनके लिए भी
जो बाहर हैं उनके लिए तो और भी
बड़ी बिटिया किस हाल में होगी
छोटी कैसे होगी
सबकी बेटियाँ और बेटे कैसे होंगे

देश बन्द है
जहाज बन्द है रेल बन्द है
आना-जाना सब बन्द है फिर भी
कुछ मज़दूर हैं मजबूर हैं
जिनके पास कोई ठिकाना नहीं
चल पड़े सब पैदल अपने घर
अपने गाँव
शायद गाँव की गोद बचा ले उन्हें
इस काली छाया से

सरकारें जाग रही हैं
खजाने की तोप का मुँह पूरा खोलकर
ख़ाकी वर्दी
और सफ़ेदपोशाक की फ़ौज बनाकर
सड़कों और अस्पतालों में
काली छाया से
सफ़ेद तरीके से रोज़ लड़ रही हैं
ये तो काली छाया है छद्मयुद्ध कर रही है
छिप-छिपकर पीछे से
किसी का भी कालर पकड़कर खीच ले रही है
दूसरे के कन्धे पर बन्दूक रखकर चला रही है
धोखा देकर किसी भी देश में किसी भी राज्य में
किसी भी घर में घुस जा रही है

एक
पैंतालीस और चालीस साल का
बेहद ख़ूबसूरत जोड़ा
काली छाया की गिरफ़्त में
नाउम्मीद होकर
सबके सामने
पृथ्वी का श्रेष्ठ चुम्बन ले रहा है
अपने जीवन को चूम रहा है
अपने प्रेम को चूम रहा है
पृथ्वी को चूम रहा है

एक
साठ साल का बुज़ुर्ग
काली छाया की मृत्युकारा से
पाँच मिनट का पेरोल लेकर
अपने घर के गेट के सामने
काँच की दीवार के उस पार
अपने भरे-पूरे परिवार को
निहार रहा है

छाया का
न कोई धर्म है न ईमान
अभी-अभी इस क्रूर छाया ने
एक अड़तीस साल के युवा को
खींचकर अपना आहार बना लिया है
जिसकी बीवी रात के भोजन पर
उसकी प्रतीक्षा कर रही है
और उसकी नन्ही बच्ची
इन्तज़ार करते-करते सो गई है
जबकि छाया को ऐसा नहीं करना था
उस युवा के बुजुर्ग पिता कभी भी
छाया का भोजन बनने के लिए
प्रस्तुत थे

एक स्त्री
अपनी चूड़ियाँ तोड़ रही है
अपना सिर दीवार पर मार रही है
अटूट विलाप कर रही है
पर्वत रो रहे हैं नदियाँ आँसू बहा रही हैं
फूले हुए सुर्ख़ गुलमोहर
और पीले अमलतास रो रहे हैं
गुलाब असमय अपनी टहनियों से
मुरझाकर गिर रहे हैं

प्रकृति रो रही है
काली छाया हंस रही है
डायनासोर की तरह पृथ्वी को
रौंद रही है
दर्प में चूर निर्वस्त्र हो रही है
वीभत्स हो रही है
कई राजाओं महाराजाओं
और राष्ट्रध्यक्षों के सिर पर पैर रखकर
अहंकार में नाच रही है
यह विहसना ठीक नहीं है छाया
पृथ्वी से यह क्रूरता ठीक नहीं है छाया
मनुष्य से यह शत्रुता ठीक नहीं है छाया

यह एक ऐसा युद्ध है
सभी देशों की सरकारें एक साथ जाग रही हैं
और इस काली छाया के नाश के लिए
सारा विश्व एक है
घर-घर में
जितना भय है उससे ज़्यादा रोष है
दुनियाभर की असँख्य माँएँ विकल हैं
दुनियाभर के असँख्य पिताओं के सीने में आग है

दुनियाभर के असँख्य बेटे
कुछ सोच रहे होंगे कुछ कर रहे होंगे
यह काली छाया आज है कल नहीं रहेगी
नहीं रहेगी नहीं रहेगी नहीं रहेगी
पृथ्वी रहेगी पृथ्वी माँ है सबकी
इसी धरती के असँख्य लाल जुटे होंगे
अपनी माँ को बचाने के काम में जी-जान से
कोई दौड़कर बांस काट रहा होगा
कोई बन्दूक में गोली भर रहा होगा
कोई म्यान से तलवार निकाल रहा होगा
कोई काली छाया का झोंटा पकड़ने के लिए
अपनी भुजाओं को तैयार कर रहा होगा
कोई काली छाया को वश में करने के लिए
किसी प्रयोगशाला में कोई प्रयोग कर रहा होगा ।