भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊबने जी लगा आज संसार से / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ग़ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊबने जी लगा आज संसार से।
फूल हैं हारने अब लगे ख़ार से॥

कटु वचन मत कहें बोल मीठे रहें
हैं बिदकते सदा मीत तकरार से॥

झूठ के पाँव होते नहीं सत्य है
चल रहा विश्व केवल सदाचार से॥

अब मना लीजिये रूठ जाये अगर
प्यार से या कि फिर मीठी मनुहार से॥

क्या करें चंचला कामना कब थकी
झुक रही है कमर पाप के भार से॥

साँवरे श्याम का नाम लेते रहें
वो बचा ले भँवर और मझधार से॥

राधिकानाथ को सौंप जीवन दिया
डर नहीं अब हमें जीत या हार से॥