Last modified on 3 अप्रैल 2020, at 19:19

जिससे बाँधा बन्धन है / रंजना वर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ग़ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिससे बाँधा बन्धन है।
वह तो अपना ही मन है॥

झूठी बात नहीं कहता
कहता सच ही दरपन है॥

ध्यान धरो जगदीश्वर का
तन तो तप का साधन है॥

मधुसूदन की वंशी से
गूंज रहा वृंदावन है॥

श्वेत कपोत उड़ायें फिर
खुशियों का अभिनन्दन है॥

एक कली जैसी बेटी
महकाती घर आँगन है॥

मृत्यु-नटी है द्वार खड़ी
करना हरि का चिंतन है॥