भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 6 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह= }} Category:नज़्म <poem> क्यों तेरे ग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक हिं पलकें
क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए

बरसात की इस रात में ए दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती ही चली जाए

कुछ एसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए

शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन
रक्खा है अजब नाम के जो रास न आए