तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब / मोमिन
तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
कहीं साया मेरा पड़ा साहब
है ये बन्दा ही बेवफ़ा साहब
ग़ैर और तुम भले भला साहब
क्यों उलझते हो जुम्बिशेलब से
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब
क्यों लगे देने ख़त्ते आज़ादी
कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब
दमे आख़िर भी तुम नहीं आते
बन्दगी अब कि मैं चला साहब
सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरोजफ़ा
जो किया सो भला किया साहब
किससे बिगड़ेथे,किसपे ग़ुस्साथे
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब
किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रेख़ैर था साहब
नामे इश्क़ेबुताँ न लो मोमिन
कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब
ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ
ख़फ़ा--नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब--होंटो का हिलना
ख़त्तेआज़ादी--आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़,
दमेआख़िर-- अंतिम समय, ज़िक्रेख़ैर--बखान,
नाम-ए-इश्क़-ए-बुताँ--मसीनों के प्रेम का नाम