छम छम लगे बरसने मेह।
पहुँच गये सब अपने गेह॥
आँगन, छत, मुंडेर भीगे
भीगे कपड़े, भीगी देह॥
धूप खिली था खुला गगन
बरखा का न हुआ सन्देह॥
पल में पर मौसम बदला
बरस रहा है नभ का स्नेह॥
छम छम लगे बरसने मेह।
पहुँच गये सब अपने गेह॥
आँगन, छत, मुंडेर भीगे
भीगे कपड़े, भीगी देह॥
धूप खिली था खुला गगन
बरखा का न हुआ सन्देह॥
पल में पर मौसम बदला
बरस रहा है नभ का स्नेह॥