भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मरते हैं हम तो आदम-ए-ख़ाकी की शान पर / मीर तक़ी 'मीर'
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:28, 6 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' }} Category:ग़ज़ल <poem>मरते हैं हम तो आदम-ए-ख़ाकी ...)
मरते हैं हम तो आदम-ए-ख़ाकी की शान पर
अल्लाह रे दिमाग़ कि है आसमान पर
कुछ हो रहेगा इश्क़-ओ-हवस में भी इम्तियाज़
आया है अब मिज़ाज तेरा इम्तिहान पर
मोहताज को ख़ुदा न निकाले कि जू हिलाल
तश्हीर कौन शहर में हो पारा-नान पर
शोख़ी तो देखो आप कहा आओ बैठो "मीर"
पूछा कहाँ तो बोले कि मेरी ज़ुबान पर