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मानस मिलन हुआ स्वप्नों में / रंजना वर्मा

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मानस मिलन हुआ सपनों में
कैसे उसको जाने दूँगी॥

अभी अभी तो फूल खिले थे
मधुर मिलन के गीत मिले थे,

मौन पपीहा रहे बिरह का
आज न उसको गाने दूँगी।
मानस मिलन हुआ सपनों में
कैसे उसको जाने दूँगी॥

रजनीगंधा-सा तन महका
पागल-सा मन बहका बहका,
स्मृतियों के ताजमहल में
यादों को छुप जाने दूँगी
मानस मिलन हुआ सपनों में
कैसे उसको जाने दूँगी॥

दूर कहीं गंगा के तीरे
ठिठक गई मेरी रजनी रे,
उठे बिरह उत्ताल तरंगें
नौका नहीं बहाने दूँगी।
मानस मिलन हुआ सपनों में
कैसे उसको जाने दूँगी॥