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झाँक रहा है प्यार तुम्हारा / रंजना वर्मा

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मनके सूने खालीपन में,
आकांक्षाओं के दर्पण में,
सुस्मृति के लघु वातायन से झाँक रहा है प्यार तुम्हारा॥

सांझ ढले जब रजनीगंधा
महका देती मन का उपवन,
दूर पपीहे की पी ध्वनि से
गूंजा करता मन का आँगन।

कोकिल की मीठी कुहुकन में,
भ्रमरों की मादक गुंजन में
उषा प्रिया के नीराजन से झलक रहा संसार तुम्हारा।
 झाँक रहा है प्यार तुम्हारा॥

भरी दुपहरी-सा संपूरित
सपनों की मधुरिम नगरी-सा,
सुमन सुमन की मुस्कानों में
संसृति की नीहार दरी-सा।

मन प्राणों के मधुर मिलन में,
संस्पर्शों की मृदु सिहरन में
मदिरालय की मादकता ले प्यार बना रस धार तुम्हारा।
 झाँक रहा है प्यार तुम्हारा॥