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अंतर झकझोर गयी फागुनी पवन / रंजना वर्मा

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अंतर झकझोर गयी फागुनी पवन।
बिछड़े सनेही को नेह का नमन॥

बौर उठी अमराई बौराया मन
तन मन सुलगा बैठी प्यार की अगन,
मादक मनुहार या कि चंदनी बयार
उर को सहला देती मीत की लगन।

बौराई आशा ने तोड़े बंधन।
बिछड़े सनेही को नेह का नमन॥

मिल जाओ तुम तो तनहाइयाँ बहकें
खुशियों की अगणित शहनाइयाँ चहकें,
मुरझाये मन पर हो स्नेह की फुहार
पतझड़ की सूखी अमराइयाँ महकें।

छू लो तुम पीड़ा कि दूर हो चुभन।
बिछड़े सनेही को नेह का नमन॥

पाती दो तुम तो हो मिलन अधूरा
इंतजार में न कटे जीवन पूरा,
अनियारी आँखों में दीप जल उठे
नेह मिले थोड़ा या आधा अधूरा।

बैरी जो बाधाएँ हों सभी हवन।
बिछड़े सनेही को नेह का नमन॥