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अंक आकाश में सो रही चाँदनी / रंजना वर्मा

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अंक आकाश में सो रही चाँदनी।
अजनबी-सी बड़ी हो रही चाँदनी॥

बिजलियाँ जो गिरीं मन झुलस-सा गया
दाग़ दिल के सभी धो रही चाँदनी॥

ये बहारें ये नग़मे ये उठता धुँआ
इन में जाने कहाँ खो रही चाँदनी॥

गोद में गुल के शबनम सिसकने लगी
साथ इन के कहीं रो रही चाँदनी॥

आँख उठती नहीं देह पीली पड़ी
रात सँग चाँद के जो रही चाँदनी॥