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प्रदूषण की बहती लहर काटना है / रंजना वर्मा

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प्रदूषण की बहती लहर काटना है।
हमें यों ही सारी उमर काटना है॥

बढ़ी नीर जलकुंभियाँ हैं फसल सी
जिधर बढ़ रही हैं उधर काटना है॥

बढ़ा जा रहा घोर आतंक है जो
उसे हमको आठो पहर काटना है॥

कहीं फैल वट-सा मिटा दे न हमको
कि अब नफरतों का शज़र काटना है॥

नदी बह रही हर तरफ़ खून की जो
यहीं अपने शामो सहर काटना है॥