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आवत मोहन वेणु बजावत / रंजना वर्मा

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आवत मोहन वेणु बजावत।
नाचत गावत ग्वाल रिझावत॥

आन बसे मन की नगरी हरि
रूप अनूप हिया तरसावत॥

हे घनश्याम मिलो अब या ढिग
ग्वाल जहाँ मिल ताल बजावत॥

आय गयी वृषभानु लली इत
नन्दलला जित रास रचावत॥

होइ रह्यो मन में अति आनँद
ग्वालन के सँग नाचत गावत॥