रवीन्द्र संगीत (गीत-1) / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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एक टुकु छोआं लागे
एक टुकु कौथा शूनि
ताई दिये मोने मोने
रोची मोमो फाल्गुनी
किछू पौलाशेर नेशा
किछू बा चाँपाये मेशा
ताई दिये शूरे शूरे
रौंगे
-रौशे जाल बुनी
जे टूकू काछे ते आशे
खनिकेर फाँके फाँके
चोकितो मोनेर कोने
श्वौपनेर
छोबि आँके
जे टुकु जाये रे दूरे
भाबना काँपाये शूरे
ताई निये जाये बैला
नूपूरेरो ताल गूनी
अनुवाद:
स्थाई का भाव कुछ ऐसा है कि बस थोड़ी सी छुअन, थोड़ी सी बातें सुन कर मैंने अपने मन में बसंत को प्रवेश करने दिया है, वसंत (वसंत के भाव) रच रहा/रही हूँ। इसी आधार पर इस कविता का अनुवाद:
थोड़ी सी छुअन लगी
थोड़ी सी बातें सुनी
उन ही से मन में मेरे
रची मंने फाल्गुनी
कुछ तो पलाश का नशा
कुछ चंपा के गंध मिला
उन ही से सुर पिरोये
रंग ओ’ रस जाल बुने
जो थोड़ी देर पास आते
क्षणों के बीच में से
चकित मन कोने में
स्वप्न की छवि बनाते
जो थोड़ी भी दूर जाते
भावना स्वर कँपाते
उन ही से दिन बिताये
नूपुर के ताल गिने
थोड़ी सी छुअन लगी...
हिन्दी में अनुवाद : मानोशी चटर्जी